वाराणसीएक घंटा पहले
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विंध्य क्षेत्र की पहाड़ियों से मिले रॉक आर्ट। इसका रंग 20 हजार साल बाद भी हल्का नहीं हुआ है।
आज से 25-30 हजार साल प्राचीन गुफा की चित्रकलाओं के रंग आज भी गहरे हैं। इन रंगों से भीमबेटका से लेकर अजंता और गुफाओं की पुरा चित्रकलाओं के बारे में जानकारियां मिलती हैं। इसके पीछे लौह अयस्क यानी कि लोहे के मूल स्रोत हेमेटाइट का पता चला है। अब प्राचीन काल में गुफाओं में बनी हजारों साल पुरानी चित्रकलाओं पर विधिवत स्टडी होगी। वहीं, आज के रिसर्चर भी उन दुर्लभ कलाओं को सीखेंगे।

रंगों में लौह अयस्क हेमेटाइट के उपयोग का पता चला है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के दो वैज्ञानिकों जियोलॉजी विभाग के प्रो. चलापति रॉव और पुरातत्व विभाग के डॉ. सचिन तिवारी को संयुक्त तौर पर भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने एक प्राेजेक्ट दिया है। इसमें वे पता लगाएंगे कि पुरा शैल कलाओं में हेमेटाइट का क्या उपयोग है। 2 साल की इस परियोजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और बिहार की कैमूर पहाड़ी पर अध्ययन किया जाएगा।

जियो वैज्ञानिक प्रो. चलापति राॅव।

आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सचिन तिवारी।
खोजेंगे रंग निर्माण की तकनीक
वैज्ञानिक यह भी पता लाएंगे कि यूपी और बिहार के विंध्य क्षेत्र स्थित आदिवासी समाज में रंग निर्माण की पद्धतियां क्यों लुप्त हो रहीं हैं। आधुनिक आदिवासी समूहों में रंग निर्माण की वजह, तकनीक और विज्ञान को समझने का प्रयास किया जाएगा। प्राचीन काल में चित्रकला में इस्तेमाल तकनीक को जानकर इसे फिर से जीवंत किया जाएगा। भारतीय शैलकला में विशेष रूप से हेमेटाइट सामग्री के उपयोग के संबंध में उनकी रासायनिक संरचना और संरचना, माध्यमों (जैविक और गैर-कार्बनिक) और बाइंडरों के प्रकार (प्राकृतिक और कृत्रिम) के लिए वर्णक का विश्लेषण करेंगे। साथ ही साथ इको सिस्टम में वर्णक के स्रोत की खोज का पता लगाने का प्रयास करेंगे।
हेमेटाइट को पीसेंगे, तो मिलेगा खून जैसा लाल पाउडर
हेमेटाइट नाम ग्रीक शब्द “हैमाटाइटिस” से बना है। जिसका अर्थ है ‘खून जैसा लाल’। यह नाम हेमेटाइट के रंग से ही आया है। इसे तोड़ने या रगड़ कर महीन पाउडर बनाने पर इसका रंग खून जैसा लाल होता है। आदिम लोगों ने पता लगाया था कि हेमेटाइट को रंग के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पीस कर और घिसकर एक तरल के साथ मिलाया जा सकता है। हेमेटाइट प्राचीन चित्रकला के प्रमुख स्रोतों में से एक था।