पढ़ें बगलामुखी जयंती की कथा वैशाख शुक्ल अष्टमी को माँ बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 9 मई 2022 को मनाया जायेगा । कथा इस प्रकार है । भगवान् विष्णुजी ने धरती पर आए भयंकर तूफान का नाश करने के लिए तप किया और मां बगलामुखी प्रकट हुईं। पौराणिक ग्रंथों में दशमहाविद्या यानी दस महान विद्या रूपी देवियों का वर्णनं मिलता है। इन्हें पार्वती देवी के दस रूपों के रूप से जाना जाता है। इनमे से मां बगलामुखी अष्टम महाविद्या के रूप से विख्यात है । कहते हैं कि मां बगलामुखी भयंकर तूफान को रोकने के लिए धरती पर प्रकट हुई थीं। जिस दिन उनका धरती पर प्राकट्य हुआ, उस दिन मां बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। मां के भक्त हर साल हिंदू मास वैशाख के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाते हैं। इस साल ये पर्व 9 मई को है। मां बगलामुखी का धरती पर अवतरण कैसे हुआ था? मां बगलामुखी जयंती क्यों मनाई जाती है, इसका क्या महत्व है? पढ़ें यह पौराणिक कथा।
सतयुग की बात है। एक बार पूरे ब्रह्मांड में एक भयंकर तूफान उठा। वो तूफान इतना शक्तिशाली था कि उसके प्रभाव से समस्त प्राणी जगत का नाश हो जाता। इस तूफान से सभी लोकों में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु को जग के पालनहार के रूप में माना जाता था। सभी देव और ऋषि-मुनि विष्णुजी के पास पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु से इस भयंकर तूफान को रोकने के लिए कोई उपाय करने का आग्रह किया।
इस समस्या से विष्णुजी चिंतित हो गए। वह खुद अकेले इस शक्तिशाली तूफान का मुकाबला नहीं कर सकते थे। इसलिए वह धरती पर आए और सौराष्ट्र देश (वर्तमान के गुजरात) में स्थित हरिद्रा नाम के एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां विष्णुजी ने भगवती को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप शुरू किया।
विष्णुजी के तप से हरिद्रा सरोवर का पानी हल्दी की तरह पीले रंग में तब्दील हो गया। कुछ समय बाद सरोवर से बगलामुखी के रूप में श्रीविद्या प्रकट हुईं। विष्णुजी ने उन्हें समस्या बताई। मां बगलामुखी ने शक्तिशाली तूफान का मुकाबला किया और उसका नाश कर दिया।
इस तरह मां बगलामुखी ने समस्त प्राणी जगत को नष्ट होने से बचा लिया। सरोवर के पानी का रंग पीला होने के चलते मां बगलामुखी को पीतांबरा देवी भी कहा जाता है। मां बगलामुखी जयंती पर देवी की खास उपासना की जाती है। भक्त मानते हैं कि इस दिन मां की उपासना करने से बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है।