पृथ्वी को अधर्म से धर्म पर चलाने के लिए भगवान ने लिए अनेकों अवतार:- आचार्य तरुण डोगरा
ऊना, अग्रवाल:
हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना की ग्राम पंचायत झंबर में 12 अप्रैल से 20 अप्रैल तक निरंतर चली आ रही श्रीमद् रामायण कथा ज्ञान गंगा के सातवें दिवस पर सुविख्यात कथा व्यास आचार्य तरुण डोगरा जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया कि किस प्रकार भगवान ने अनेक अवतारों में जन्म लेकर इस धरती को अधर्म से धर्म के मार्ग पर चलाया था, जिसका वर्णन हम सभी ग्रंथों और इतिहास में देख और पढ़ सकते हैं। और आज उसी प्रभु के द्वारा ये सारी सृष्टि रचित है जिसे इस धरती का एक-एक जीव जानता है। लेकिन आज के इस आधुनिक व वैज्ञानिक युग में लोग सृष्टि के रचयिता भगवान को न मानकर अपने आपको स्वंय भगवान का स्थान देने लगे हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं को अपने संदेश और उपदेश में कहा कि अगर हम अपने इस मानव रूपी चोले का उद्धार करना चाहते हैं तो हमें ज्यादा नहीं तो केवल वर्ष में एक बार श्रीमद् भागवत व श्रीमद् रामायण कथा को श्रवण करना चाहिए, क्योंकि जो जीव एक बार इन दोनों ग्रंथों की कथा सुन लेता है। वह सीधा बैकुंठ में प्रवेश करता है ऐसा गीता में लिखा गया है।
आचार्य तरुण डोगरा ने इस भागवत सप्ताह के दौरान सैकड़ों की संख्या में उमड़े श्रद्धालुओं को भक्ति रस में रंग दिया। उन्होने भगवान श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए विस्तार से श्रद्धालुओं को बताया। उन्होने बताया कि भगवान के प्रति श्रद्धा और संतो के मिलने से ही प्रभु भक्ति की धारा उत्पन्न होती है और वह समय इतना अनमोल होता है कि भगवान भी इसकी कीमत नहीं चुका सकते। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति करने का एकमात्र यही रास्ता है कि हम कथा सुनने के माध्यम से ही भगवान के साक्षात दर्शन कर सकते हैं। उन्होने बताया कि भगवान श्रीराम ने अपनी माया से किस प्रकार धर्म को ना अपनाकर अधर्म के मार्ग पर चलने बालों को परास्त कर दिया था, क्योंकि लंकापति रावण भगवान श्री राम की सत्यवती अर्धांगिनी माता सीता को अधर्म के मार्ग पर चलकर छल-कपट से पाना चाहते थे और लाख समझाने पर भी वह अपने अधर्म पर अडिग रहे। यहां तक कि उन्होंने भगवान श्रीराम को युद्ध तक की चुनौती दे दी थी। लेकिन भगवान श्रीराम ने महावीर हनुमान जी व अंगद जी द्वारा रावण को शांति संदेशा तक भेजा था। परंतु रावण के अंग अंग में अधर्म की गंगा बह रही थी। जिस कारण लाख कोशिशें करने के बावजूद भी अधर्मी रावण के नाम आने पर यह युद्ध अंततः निश्चित हो गया था। उन्होंने कहा कि हम कथा सुनते हैं और चले जाते हैं लेकिन भगवान श्रीराम ही एकमात्र हमारा सहारा है जो हमारी नैया पार कर सकते हैं। उन्होने बताया कि इस संसार पर हम स्वंय ही हावी हो चुके हैं और भगवान का नाम लेने से संकोच करते हैं। इसका कारण हम स्वंय नहीं ये कलयुग का प्रकोप है। क्योंकि ब्रहमा द्वारा वेदों में ये लिखा भी गया है कि कलयुग में लोग पुण्य कम और पाप ज्यादा करेगें। उसी का परिणाम आज हम देख और सुन भी रहे हैं। उन्होने आज की युवा पीढ़ी को कथा के माध्यम से अच्छे कर्म करने का आग्रह करते हुए कहा कि आज का युवा वर्ग पुरानी संस्कृति, धर्म और हिंदुत्व समाज को भूलता जा रहा है। इसमें युवा पीढ़ी के साथ-साथ उनके माता-पिता का भी हाथ है क्योंकि अगर माता-पिता द्वारा बच्चों को अच्छी शिक्षा और भारत की संस्कृति के बारे में ज्ञान दिया जाता है, तो काफी हद तक बच्चे और आज की युवा पीढ़ी इस देश का भविष्य बनकर उभर सकती है। उन्होने कहा कि सुख बाहर की नहीं, भीतर की संपदा है। यह संपदा धन से नहीं धैर्य से प्राप्त होती है। हमारा सुख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने धनवान है अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने धैर्यवान हैं। जबकि सुख और प्रसन्नता आपकी सोच पर निर्भर करती है। इस दौरान उन्होंने भगवान की महिमा का गुणगान करते हुए पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को भक्तिमय कर दिया।