पितरों के रूप: पितृ पक्ष में पूर्वजों की उपस्थिति और उनका आशीर्वाद

विवेक अग्रवाल
शिमला
“जब-जब पितृ पक्ष आता है, हवा में एक अदृश्य आहट सी महसूस होती है। मानो हमारे पूर्वज, जिनकी जड़ें हमारे जीवन की नींव हैं, घर के आंगन में उतरकर हमें आशीर्वाद देने आते हों। कभी वे कौए की कांव में, कभी चींटियों की कतार में, तो कभी गाय की मधुर दृष्टि और कुत्ते की स्नेहिल निगाह में दिखाई देते हैं। यह संकेत होते हैं कि पितर दूर नहीं, यहीं हमारे आसपास हैं और श्राद्ध, तर्पण तथा अन्न-जल के माध्यम से तृप्त होकर हमें सुख-समृद्धि का वरदान देने आए हैं।”
पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन अमावस्या तक चलती है। इस बार पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक रहेगा। पंद्रह दिनों की यह अवधि पूरी तरह पूर्वजों को समर्पित होती है।
श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्मकांड इसी अवधि में किए जाते हैं। मान्यता है कि इन दिनों पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के अर्पण से तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।
किस रूप में आते हैं पितर
कौए
शास्त्रों में उल्लेख है कि पितर प्रायः कौओं के रूप में आते हैं। पितृ पक्ष में कौओं को अन्न-जल देना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से पितरों को शांति और संतोष मिलता है।
चींटियां
लाल चींटियों का अचानक घर में दिखाई देना भी पितरों के आगमन का संकेत है। मान्यता है कि इस दौरान उन्हें आटा या गुड़ खिलाना चाहिए। इससे पितरों की कृपा बनी रहती है।
गाय और कुत्ते
गाय या कुत्ते का घर के द्वार पर आना भी शुभ संकेत माना जाता है। इन्हें भोजन कराना पितरों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने का सरल माध्यम है।
क्यों आते हैं पितर
ज्योतिष और धर्मशास्त्र के अनुसार, पितर अपने वंशजों से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के रूप में अन्न-जल ग्रहण करने आते हैं। उनका तृप्त होना परिवार की खुशहाली, सुख और समृद्धि का कारण बनता है।
यदि पितर संतुष्ट न हों, तो उनके असंतोष का परिणाम पितृ दोष के रूप में सामने आता है। यही कारण है कि पितृ पक्ष में किसी भी जीव—चाहे वह कौआ, चींटी, गाय या कुत्ता क्यों न हो—को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। उन्हें अन्न-जल खिलाना ही पूर्वजों को तृप्त करने का सच्चा मार्ग है।
पितृ पक्ष पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर
पितृ पक्ष केवल कर्मकांड का समय नहीं, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है। यह याद दिलाता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े हैं और उन्हीं की कृपा से जीवन का वृक्ष फल-फूल रहा है।
पितृ पक्ष हमें यह सिखाता है कि पूर्वज केवल अतीत नहीं, बल्कि वर्तमान की आत्मा और भविष्य का आधार हैं। उन्हें तृप्त करना ही सच्चे अर्थों में धर्म है।


