प्रताप सिंह द्वारा रचित कविता जो आज की सभ्यता का दर्शाता हैं कि लोग अपनी सभ्यता को किस ओर ले जा रहे हैं |
एक जमाना था, आवागमन के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से मिला करते थे।
आज आवागमन के साधनों की भरमार है।
फिर भी लोग न मिलने के बहाने बताते है।
हम सभ्य जो हो रहे है।
एक जमाना था, गाँव की बेटी का सब ख्याल रखते थे।
आज पड़ौसी की बेटी को भी उठा ले जाते है।
हम सभ्य जो हो रहे है।
एक जमाना था, लोग नगर-मौहल्ले के बुजुर्गों का हालचाल पूछते थे।
आज माँ-बाप तक को वृद्धाश्रम मे डाल देते है।
हम सभ्य जो हो रहे है।
एक जमाना था, खिलौनों की कमी थी।
फिर भी मौहल्ले भर के बच्चे साथ खेला करते थे।
आज खिलौनों की भरमार है, पर घर-द्वार तक बंद हैं।
हम सभ्य जो हो रहे है।
एक जमाना था, गली-मौहल्ले के जानवर तक को रोटी दी जाती थी ।
आज पड़ौसी के बच्चे भी भूखे सो जाते है।
हम सभ्य जो हो रहे है।
एक जमाना था, नगर-मौहल्ले मे आए अनजान का पूरा परिचय पूछ लेते थे।
आज पड़ोसी के घर आए मेहमान का नाम भी नहीं पूछते
हम सभ्य जो हो रहे हैं।
वाह री सभ्यता ! वाह री सभ्यता ! वाह री सभ्यता !