Friday, April 19, 2024

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सावित्रीबाई फुले जी का जन्मदिन बिटिया फाउंडेशन के मुख्य कार्यालय में मनाया

सावित्रीबाई फुले जी का जन्मदिन बिटिया फाउंडेशन के मुख्य कार्यालय में मनाया

ऊना, विवेक अग्रवाल:

आज बिटिया फाउंडेशन के मुख्या  कार्यालय में सावित्रीबाई फुले  जी के  जन्मदिन के शुभ  अवसर पर मिठाई बाँट कर बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया।
बिटिया फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्षा सीमा सांख्यान  ने कहा  की सावित्रीबाई फुले  जी का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्री बाई के पिता का नाम खंडोजी नेवसे था और माता का नाम लक्ष्मी बाई था। इसी के साथ सावित्रीबाई भारत की सबसे पहली महिला शिक्षिका भी रही और कवित्री और समाज सेविका भी रही थी।
उन्होंने कहा की सावित्रीबाई की जिंदगी का सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि लड़कियों को शिक्षित किया जाए। 9 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई फुले का विवाह हो गया था। सावित्रीबाई एक बुद्धिमान महिला थी, इन्हें मराठी भाषा का भी ज्ञान था। सावित्रीबाई एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती  थी, इसके बावजूद भी वह भारत की पहली शिक्षिका बनी। इसी के साथ वह एक समाज सेविका भी बनी  और कवियत्री के रूप में भी उभरी सावित्रीबाई के द्वारा दो काव्य पुस्तकें भी लिखी गई थी, पहला काव्य उनका फुले और दूसरा बावनकशी सुबोधरत्नाकर था।
उन्होंने कहा की सावित्रीबाई अपने जीवन में कुछ अच्छा करना चाहती थी। इसके लिए उनका बस एक ही लक्ष्य था कि किसी भी तरह से महिलाओं को शिक्षित किया जाए और उन्होंने इसके लिए कई कदम भी उठाए। 1848 में उन्होंने जब सावित्रीबाई फुले जी को बच्चे पढ़ाने जाती थी, सब लोग उन पर गोबर की बरसात करते थे। अर्थात उनको गोबर फेक कर मारते थे, और उन लोगों का कहना था कि शूद्र से अति शूद्र लोगों को पढ़ाने का अधिकार नहीं होता है, इसीलिए लोगों के द्वारा सावित्रीबाई को रोका जाता था। इतना सब होने के पश्चात भी सावित्रीबाई नहीं रुकी और वह हमेशा अपना झोला लेकर चलती रही। उस झोले में हमेशा वह एक जोड़ी कपड़े रखा करती थी और जब लोग उन्हें गोबर से मारते थे तब उनके कपड़े गंदे हो जाते थे, इसीलिए वह स्कूल में पहुंचकर अपने कपड़ों को बदल लिया करती थी, इसके पश्चात बच्चों को पढ़ाया करती थी। सावित्री बाई का सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि किसी भी तरह बच्चियों को पढ़ाया जाए। इसी के साथ उन्होंने कई प्रथाओं पर रोक हटाई और उन्हें उन पर कामयाबी में  मिली जैसे की विधवा विवाह करना, छुआछूत को मिटाना, महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाना और महिलाओं को शिक्षित करना, इन सब के दौरान सावित्रीबाई ने खुद के 18 स्कूल भी खोलें सबसे पहले उनका स्कूल पुणे में खुला था।उनके द्वारा जब पहला स्कूल खोला गया था तब केवल 9 बच्चे ही उस स्कूल में आते थे और उन्हें भी वह पढ़ाती थी। परंतु 1 वर्ष के अंदर बहुत सारे बच्चे आने लग गए थे।सावित्रीबाई के द्वारा 3 जनवरी 1848 को अपने जन्मदिन पर उन्होंने अपना सबसे पहला स्कूल खोला था, जिसमें 9 अलग-अलग जातियों के बच्चों को लेकर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया था। इसके पश्चात उन्होंने धीरे-धीरे यह मुहिम चलाई की महिलाओं को शिक्षित करना अनिवार्य है और उन्होंने इस मुहिम में सफलता भी पाई इसके पश्चात सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले दोनों ने मिलकर 5 स्कूलों का निर्माण करवाया।
उस समय लोगों की बहुत ही गलत विचारधारा थी कि लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहिए। इसी के साथ सावित्रीबाई ने इस विचारधारा को भी बदल कर रख दिया और लोगों को यह भी समझा दिया कि पढ़ने का अधिकार जिस प्रकार लड़कों को है, उतना ही लड़कियों को भी मिलना चाहिए।
इसके लिए सावित्रीबाई ने बहुत संघर्ष किया। इसके बाद उन्होंने एक केंद्र की भी स्थापना की, जहां पर उन्होंने विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह के लिए भी प्रेरित किया। इसी के साथ अछूतों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया गया।
सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिबा फुले दोनों ही एक समाज सुधारक थे। उन दोनों ने मिलकर समाज की बहुत अच्छे प्रकार से सेवा की थी। परंतु उनकी कोई संतान नहीं थी, इसीलिए उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंतराव को गोद ले लिया था। इस बात का विरोध पूरे परिवार के सभी सदस्यों ने किया इसीलिए, उन्होंने अपने परिवार से अपना संबंध समाप्त कर दिया।
सीमा सांख्यान ने कहा की 1852 मैं तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने पूरे दंपत्ति को महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने के लिए भली प्रकार सम्मानित किया। इसी के साथ केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति के रूप में भी कई पुरस्कारों की स्थापना की थी।इन सब के साथ ही सावित्री जी के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। क्योंकि यह आधुनिक शिक्षा में सबसे पहली महिला शिक्षिका है। इन्हें मराठी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था, इसीलिए इन्हें मराठी भाषा का अगुवा माना जाता है। सीमा सांख्यान ने कहा की 1897 में जब लोग प्लेग से ग्रसित हो रहे थे तब सावित्रीबाई और उनके पुत्र के द्वारा एक अस्पताल खोला गया और उस अस्पताल में अछूतों का इलाज भी किया गया। परंतु इस बीमारी के दौरान सावित्रीबाई खुद भी इस बीमारी का शिकार हो गई और उनका निधन हो गया।
सीमा सांख्यान ने कहा की हमारे भारत में कई ऐसे लोग हुए हैं, जो आज भी सम्मान के काबिल हैं। उन्होंने हमारे भारत के लिए और भारत के लोगों के लिए बहुत से ऐसे काम किए हैं, जिसकी वजह से आज लोगों को अपने हक मिल रहे हैं। इसीलिए हमें ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए। सावित्रीबाई के द्वारा आज लड़कियों को पढ़ाई में इतना महत्व दिया जाता है और उन्हें पढ़ने के लिए भेजा जाता है, इसीलिए सावित्रीबाई को हम शत शत नमन करते हैं। इस  अवसर पर बिटिया फाउंडेशन की जिला सचिव सकुंतला देवी, जिला उपाध्यक्ष वीना देवी गांव सुन्हाणी तहसील झंडूता जिला बिलासपुर ,राज्य सचिव कंचन चंदेल माया देवी , बेबी खान , चमन ठाकुर और हरीश धीमान शामिल रहे।

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