साइबर क्राइम के लगभग 80% मामलों को नहीं सुलझा पाई पंजाब पुलिस, एडवांस टेक्नोलॉजी के बिना हैकरों तक पहुंचना असंभव
— राज्य में रोजाना 10 से 15 लोग हो रहे हैं साइबर क्राइम का शिकार
फकीरचंद भगत :
राज्य में पुलिस की नाकामी से रोजाना 10 से 12 लोग साइबर क्राइम का शिकार हो रहे हैं। पुलिस के पास न तो एडवांस टेक्नोलॉजी, सॉफ्टवेयर हैं और न ही ट्रेस कर पाने के लिए वाइट हैकर। 2019 की पुलिस डिस्पोजल ऑफ साइबर क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब पुलिस के लगभग 80% मामले अभी पेंडिंग चल रहे थे। ठगी का शिकार हुए पीड़ित अपने इस आपके साथ पुलिस के पास जाते हैं कि शायद उनकी कटौती वापस मिल जाएगी। अहम बात यह है कि पुलिस की ओर से भी अभी तक ऐसा कोई मामला उजागर नहीं किया गया है जिसमें पुलिस द्वारा ऐसे हैकर्स को पकड़ने के बाद राशि का भुगतान पीड़ितों को किया गया हो। सूत्रों की माने तो साइबर क्राइम मामलों को ट्रेस करने के लिए पुलिस द्वारा एक अलग विंग बनाया गया होता है जिसमें सोर्स कोड के जरिए हैकर्स को पकड़ा जाता है। करीब 2 माह पहले साइबर क्राइम का शिकार हुए गांव माधोपुर के निवासी रजिंदर कुमार ने बताया कि करीब 2 माह पहले कॉलिंग के जरिए हैकर्स से करीब 33000 रुपए खो गया था जिसकी उसने तुरंत सूचना भी पुलिस अधिकारियों को दी थी। बड़े अफसोस की बात है कि अभी तक पुलिस द्वारा उन्हें केवल आश्वासन ही दिया गया है लेकिन अभी तक पुलिस हैकर्स को पकड़ने में नाकाम साबित हुई है। पंजाब पुलिस द्वारा साइबर क्राइम को लेकर भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हो लेकिन, पेंडिंग केस पुलिस के सभी दावों की पोल खोल रही है। पुलिस के कई कंप्यूटर ऐसे हैं जहां पर एंटीवायरस ही नहीं है। दूसरों के मामलों को ट्रेस करने वाली पंजाब पुलिस के कंप्यूटरों की सुरक्षा खुद ही राम भरोसे है।
एडवांस सॉफ्टवेयर, टेक्नोलॉजी एवं वाइट हैकर्स का अभाव-
साइबर क्राइम को ट्रेस करने के लिए जिन सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी एवं वाइट हैकर्स की जरूरत होती है वह पुलिस के पास उपलब्ध ही नहीं है। ऐसे मामलों को सोर्स कोड के माध्यम से ट्रेस किया जाता है। सोर्स कोड को जिस आईपी ऐड्रेसेस से भेजा गया हो उस आईपी ऐड्रेसेस को या तो ट्रेस किया जाता है या फिर मैलवेयर, मैलीशियस के माध्यम से उस कंप्यूटर को भी इफेक्टेड कर दिया जाता है।