छह से चौदह वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार लड़कों और लड़कियों को समान रूप से मिला हुआ है लेकिन कई बार स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टायलेट और सेनेटरी नैपकिन आदि न होने से उनके लिए इस अधिकार को सही मायने में प्राप्त कर पाना मुश्किल होता है। इस बात को कर्नाटक हाईकोर्ट ने समझा है और इन मूलभूत सुविधाओं को शिक्षा के अधिकार के दायरे में लाने की बात कही है।
कर्नाटक हाईकोर्ट की टिप्पणी
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह बात सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में अन्य सुविधाओं के साथ मुफ्त में सेनेटरी नैपकिन बांटने की कर्नाटक सरकार की शुचि योजना को कड़ाई से लागू करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।
अदालत की टिप्पणी के खास मायने
भले ही बात कर्नाटक सरकार की योजना के बारे में कही गई हो लेकिन इसके मायने व्यापक हैं। अगर देश में लड़कियों का स्कूल ड्राप आउट रेट देखा जाए तो आंकड़ों के मुताबिक माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर 17.3 फीसद है जबकि प्राथमिक स्तर पर 4.74 फीसद है।
सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना जरूरी
कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बी.वी. नागराथा और जे. एम. काजी की पीठ ने कहा कि अगर सरकार यंग वूमन और यंग गर्ल को सशक्त करना चाहती है तो ये सुविधाएं दे। कोर्ट ने आदेश में कहा कि किशोर वय की लड़कियों के लिए अलग टायलेट और उन्हें नियमित रूप से सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना न सिर्फ उन्हे सशक्त करता है बल्कि छह से चौदह वर्ष की लड़कियों के लिए अनुच्छेद 21ए (शिक्षा का अधिकार) के प्रविधानों को लागू करने की तरफ एक कदम है।
फंड के अभाव में अटकी योजना
कर्नाटक में सरकारी स्कूलों में मुफ्त सैनेटरी नैपकिन बांटने की शुचि योजना चल रही है। पहले यह योजना केन्द्र पोषित थी लेकिन बाद में केंद्र ने राज्यों से इसे चलाने को कह दिया था। कोरोना महामारी के कारण आर्थिक दबाव से कर्नाटक सरकार ने शुचि योजना का फंड जारी नहीं किया है जिससे कि यह योजना रुक गई है।
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