- सोलर एनर्जी, आज के मॉर्डन एज में ऊर्जा का वो विकल्प जो न सिर्फ किफायती है बल्कि कई और मामलों में कारगर भी साबित हो रहा है। सोलर एनर्जी के बढ़ते चलन का नतीजा है कि आज सोलर इनवर्टर साधारण इनर्वटर की तुलना में तेजी से प्रयोग में आने लगे हैं। सोलर पैनल, इस एनर्जी से चलने वाले इनर्वटर की सबसे बड़ी ताकत होते हैं। आज जानिए अगर मॉनसून के मौसम में घने बादल छाए हैं या सर्दियों में घने कोहरे की वजह से धूप नहीं निकली है तो क्या आपका इनर्वटर काम करना बंद कर देगा। यानी क्या इस मौसम में फिर आपके घर में बिजली की सप्लाई बंद हो जाएगी।
ताकि न हो एनर्जी सप्लाई में कोई रुकावट
सोलर एनर्जी अब भारत समेत दुनिया के कई देशों में ऊर्जा जरूरत को पूरा करने का एक बड़ा जरिया बनती जा रही है।
बादल या ठंड में पड़ने वाला कोहरा इस एनर्जी की सप्लाई में रुकावट न बने इसके लिए एक नया विकल्प तलाशा गया है जिसे मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल के तौर पर जानते हैं। यह सोलर पैनल, साधारण पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल से बहुत अलग होता है। इसकी खासियत ही यह है कि सूरज की कम रोशनी में भी बिजली आसानी से तैयार की जा सकती है। कई तरह के प्रयोग में इस पैनल की लाइफ नॉर्मल पैनल की तुलना में कहीं जयादा पाई गई।
क्या है मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल
मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल की क्षमता पॉलीक्रिस्टलाइन सेल से काफी ज्यादा होती है। इन सेल की शुद्धता का स्तर मोनोक्रिस्टलाइन से बेहतर होता है। नतीजतन यह प्रति वर्ग फुट ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न करता है। मोनोक्रिस्टलाइन सोलर सेल्स सिलिकॉन के सबसे शुद्ध रूप से बने होते हैं। साथ ही यह सूरज की रोशनी को ऊर्जा में बदलने के लिए काफी सक्षम पदार्थ है, जबकि बेकार या अशुद्ध केमिकल का प्रयोग पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर सेल बनाने में सामान्य रूप से किया जाता है। मोनो क्रिस्टाइन सोलर पैनल को रखने के लिए 18 फीसदी कम जगह की जरूरत होती है। इसमें प्रयोग होने वाली तार भी कम होती है। इससे समय और मेहनत की भी बचत होती है।
कैसे करता है ये इनर्वटर काम
मोनोक्रिस्टलाइन पैनल, सूरज की ऊर्जा से बिजली बनाते हैं. जब सूरज की रोशनी इसमें लगे सिलिकॉन के सेइमी कंडक्टर से टकराती है तो रोशनी से पर्याप्त मात्रा में एनर्जी को ग्रहण किया जाता है। जिससे इलेक्ट्रॉन बिखर जाते हैं। मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल से सोलर सेल बनाने के लिए सिलिकॉन की बार बनाई जाती है और उन्हें वेफर्स के रूप में काटा जाता है। इस तरह के पैनल को मोनोक्रिस्टलाइन कहते हैं। इसमें इस्तेमाल किया गया सिलिकॉन सिंगल क्रिस्टल सिलिकॉन है।
कम धूप में इसकी बेहतरीन परफॉर्मेस की वजह यह है कि सेल का रंग गहरा काला होता है इसलिए ज्यादा रोशनी को ऑब्जर्व करता है। इसके किनारे कटे हुए होते हैं। अगर तुलना की जाए तो जहां एक साधारण सोलर पैनल केवल दिन में 8 घंटे तक काम करता है, जबकि मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल दिन में 10 घंटे तक एनर्जी प्रोड्यूस कर सकता है। इसके सूरज की कम रोशनी में काम करने की क्षमता बेहतरीन होती है।
बैटरी भी है सबसे बड़ी वजह
सोलर इनवर्टर कितना चलेगा ये आपकी बैटरी पर निर्भर करता है। कनेक्शन से पहले पैनल करे बैटरी से जोड़ा जाता है। सोलर इनवर्टर सूरज की रोशनी के अलावा आपके घर की मेन सप्लाई से भी चार्ज होता है। जब आपका इनवर्टर सूरज की रोशनी में चार्ज हो रहा होता है तो मेन सप्लाई बंद रहेगी। लेकिन बारिश, सर्दियों में कोहरे की वजह से या फिर पैनल पर गंदगी जमा हो जाने की वजह से इनवर्टर मेन सप्लाई से चार्ज होता है। ऐसे में अगर बादल भी हैं और आपका पैनल मेन सप्लाई से पूरी तरह चार्ज हो गया है तो आपको पूरे दिन बिजली की सप्लाई मिलेगी।
कब से आया ट्रेंड
अगर सर थॉमस एडीसन ने इलेक्ट्रिसिटी से रोशन होने वाले बल्ब की खोज की थी तो सोलर इनवर्टर को दुनिया में सबके सामने लाने का श्रेय टेस्ला को जाता है। 19वीं सदी के अंत में टेस्ला के एक प्रयोग की वजह से 20वीं सदी के मध्य में सोलर इनर्वटर सबके सामने आ सका। साल 2000 में न्यू मैक्सिको के एल्ब्यूक्यूरेक्य के सैंदिया लैबोरेट्रीज में वैज्ञानिकों ने रेजीडेंशियल सोलर के तौर पर पहली बार सफल प्रयोग को अंजाम दिया था।